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Saturday, 2 October 2021

Fathe Baitul Maqdas । फतेह बैतुल मक़्दस

2 अक्टूबर फतह बैतूल मुकद्दस

आइये जाने सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी के बारें में, जिन्होंने फिलिस्तीन बैतूल मुकद्दस को  कराया था आज़ाद

4 मार्च 1193 यह ना सिर्फ तारीख-ए-इस्लाम बल्कि तारीख-ए-आलम के मशहूर तरीन फातहीन व हुक्मरानों में से एक हैं वो 1137 में मौजूदा इराक के शहर तकरीयत में पैदा हुए उनकी ज़ेर-ए-क़यादत अय्यूबी सल्तनत में मिस्र, शाम, यमन, इराक, हजाज़ और दयार-ए-बाकर पर हुकूमत की सलाहुद्दीन अय्यूबी की बहादुरी, जुरअत, हुस्न ख़ल्क, सखावत और बर्दबारी के बाअस ना सिर्फ मुसलमान बल्कि ईसाई भी इज्जत की निगाह से देखते हैं.

सलाहुद्दीन अय्यूबी ने 2 अक्टूबर 1187 ईस्वी को यूरोप की मुत्तहिदा फौज को इबरतनाक शिकस्त देकर बैत-उल-मुक़द्दस को आज़ाद कराया था
सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी नस्लन कुर्द थे और 1137 ईस्वी में तकरियत कुर्दिस्तान के उस हिस्से में पैदा हुए जो अब इराक में शामिल है शुरू में वह सुल्तान नूरुद्दीन जंगी के यहां एक फौजी अफसर थे.
मिस्र को फ़तह करने वाली फौज में सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी भी मौजूद थे और उसके सिपहसालार शेर कुह, सलाहुद्दीन अय्यूबी के चाचा थे मिस्र फ़तह हो जाने के बाद सलाहुद्दीन अय्यूबी को 564 हिजरी में मिस्र का हाकिम मुकर्रर कर दिया गया उस जमाने में 569 हिजरी में उन्होंने यमन भी फ़तह कर लिया.

नूरुद्दीन जंगी की मौत के बाद सलाहुद्दीन अय्यूबी हुक्मरानी पर काबिज हुए. सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी अपने कारनामों में नूरुद्दीन जंगी पर भी बाज़ी ले गए उनमें जिहाद का जज्बा कूट कूट कर भरा हुआ था और बैत-उल-मुक़द्दस की फतेह उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश थी. मिस्र के बाद सलाहुद्दीन अय्यूबी ने 1182 ईस्वी तक शाम, मोसुल, हलब  फतह करके अपनी सल्तनत में शामिल कर लिए थे उस दौरान में सलीबी सरदार रेनौल्ड के साथ 4 साला मुआहदा सुलह हो चुका था.

जिसकी वजह से दोनों एक दूसरे की मदद करने के पाबंद थे लेकिन ये वादा महज़ कागजी और रश्मि था. सलीबी बदस्तूर अपने इश्तआल अंगेज़ियों में मसरूफ़ थे और मुसलमानों के काफिले को बराबर लूट रहे थे.

1186 ईस्वी में मसीहियों के एक ऐसे ही हमले में रेनौल्ड ने यह जसारत की के बहुत से दीगर मसीही अमरा के साथ मदीना मुनव्वरा पर हमला की गरज से हजाज़-ए-मुकद्दस पर हमलावर हुए सलाहुद्दीन अय्यूबी ने उनकी सरगर्मियों की रोक थाम के लिए कदम उठाए और फौरन रेनौल्ड का तआकुब करते हुए हतीन में उसे जालिया सुल्तान ने यही दुश्मन के लश्कर पर एक ऐसा आतिश गिर मादा डलवाया जिससे जमीन पर आग भड़क उठी चुनांचे उस आतिश के माहौल में 4 जुलाई 1187 ईस्वी को हतीन के मुक़ाम पर तारीख के खौफनाक तरीन जंग का आगाज हुआ.

उस जंग के नतीजा में 30000 नसरानी हलाक हुए और उतने ही क़ैदी बना लिए गए रेनौल्ड गिरफ्तार हुआ और सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अपने हाथ से उसका सर कलम किया. उस जंग के बाद इस्लामी फ़ौज नसरानीयों के इलाकों पर छा गई हतीन की फतेह के बाद सलाहुद्दीन अय्यूबी ने बैत-उल-मुकद्दस की तरफ रुख किया एक हफ्ता तक खुंरेज़ जंग के बाद मसीहियों ने हथियार डाल दिए और रहम की दरख्वास्त की 2 अक्टूबर 1187 को बरोज़ जुमा बैत-उल-मुक़द्दस 88 साल बाद दोबारा मुसलमानों के क़ब्ज़ा में आया और तमाम फलिस्तीन से मसीही हुकूमत का खात्मा हो गया.

बैत-उल-मुक़द्दस की फ़तह सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी का अज़ीमुश्शान कारनामा था. सलाहुद्दीन अय्यूबी मस्जिद-ए-अक्सा में दाखिल होकर नूरुद्दीन जंगी का तैयार कर्दा मेम्बर अपने हाथ से मस्जिद में रखा इस तरह नूरुद्दीन जंगी की ख्वाहिश सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी के हाथों पूरी हुई. सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने बैत-उल-मुकद्दस में दाखिल होकर वह मज़ालिम नहीं की है जो उस शहर पर कब्जे के वक़्त मसीही फौजियों ने किए थे.

सलाहुद्दीन अय्यूबी एक मिसाल फातेह की हैसियत से बैत-उल-मुकद्दस में दाखिल हुए उन्होंने ज़र फिदिया लेकर हर मसीही को अमान दे दी और जो ग़रीब फिदिया नहीं अदा कर सके उनके फिदीये की रकम सलाहुद्दीन अय्यूबी के भाई मलीक आदिल ने खुद अदा की. बैत-उल-मुकद्दस पर फतह के साथ येरुशलम कि वह मसीही हुकूमत भी खत्म हो गई जो फिलिस्तीन में 1099 ईस्वी से क़ायम थी उसके बाद जल्द ही सारा फिलिस्तीन मुसलमानों के कब्जे में आ गया बैत-उल-मुकद्दस पर तकरीबन 761 साल मुसलमानों का कब्जा रहा.

फिर 1948 ईस्वी में अमेरिका, बर्तानिया, फ्रांस की साजिश से फलस्तीन के इलाका में यहूदी सल्तनत क़ायम की गई और बैत-उल-मुक़द्दस का नस्फ हिस्सा यहूदियों के कब्जे में चला गया। 1967 ईस्वी के अरब इजरायल जंग में बैत-उल-मुक़द्दस पर इस्राएलियों ने कब्जा कर लिया. जब बैत-उल-मुकद्दस की खबर यूरोप पहुंची तो सारे यूरोप में कोहराम बरपा हो गया हर तरफ लड़ाई की तैयारियां होने लगी जर्मनी, इटली, फ्रांस और इंग्लिशतान से फौजियों पर फौज रवाना होने लगी.

इंग्लिशतान का बादशाह हरचर्ड जो अपनी बहादुरी की वजह से शेर दिल मशहूर था और फ्रांस का बादशाह फलप अगस्टिस अपनी-अपनी फौज लेकर फिलिस्तीन पहुंचे. यूरोप की इस फौज की तादाद 6 लाख थी जर्मनी का बादशाह फ्रेंडर्क बारबरोसा भी इस मुहिम में उनके साथ था. मसीही दुनिया ने इस कदर लातादाद फ़ौज अभी तक फराहम ना की थी यह जीमुश्शान लश्कर यूरोप से रवाना हुआ और अक्का बंदरगाह का मुहासरा कर लिया अगरचे सुल्तान सलाहुद्दीन अयुब्बी ने तन तन्हा अक्का की हिफाजत के तमाम इंतजामात मुकम्मल कर लिए थे.

लेकिन सलीबीयों को यूरोप से मुसलसल कमक् पहुंच रही थी एक मआरका में 10000 मसीही कत्ल हुए मगर सलीबीयों ने मुहासरा जारी रखा. क्योंकि किसी और इस्लामी मुल्क ने सुल्तान की तरफ हाथ ना बढ़ाया इसलिए सलीबी नाकेबंदी की वजह से अहल-ए-शहर और सुल्तान का तअल्लुक टूट गया और सुल्तान उसके बावजूद पूरी कोशिश किये मगर मुसलमानों को कमका ना पहुंचा सके.

तंग आकर अहल-ए-शहर ने अमान के वादे पर शहर को मसीहियों के हवाले कर देने पर आमादगी जाहिर की फ़रीक़ैन के दरमियान मुआयदा तय हुआ जिसके मुताबिक मुसलमानों ने 2 लाख अशर्फियाँ बतौर तावान जंग अदा करने का वादा किया और सलीब आज़म और 500 मसीही कैदियों की वापसी की शर्तें करते हुए मुसलमानों ने हथियार डाल दिए मुसलमानों को इजाजत दे दी गई वो तमाम माल असबाब लेकर शहर से निकल जाए लेकिन रिचर्ड ने बदअहदी की और महसुरीन को कत्ल कर दिया.

अक्का के बाद सलीबीयों ने फलस्तीन की बंदरगाह असकलान का रुख़ किया असकलान पहुंचने तक मसीहियों का सुल्तान के साथ 11 या 12 मर्तबा मुकाबला हुआ सबसे अहम मआरका अरसुफ का था. सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने बहादुरी का दरख्शअंदाना मिसाल पेश की लेकिन चूँकि किसी भी मुसलमान हुकूमत बिल्खुसुस खलीफा बगदादी की तरफ से कोई मदद ना पहुंची लहज़ा सुल्तान सलाहुद्दीन अयूबी को पस्पाई इख्तियार करनी पड़ी. वापसी पर सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने असकलान शहर खुद ही तबाह कर दिया और जब सलीबी वहां पहुंचे तो उन्हें ईंटों के ढेर के सिवा कुछ भी हासिल ना हुआ इस दौरान में सुल्तान ने बैत-उल-मुकद्दस की हिफाजत की तैयारियां मुकम्मल की क्योंकि अब सलीबियों का निशाना बैत-उल-मुकद्दस था.

सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने अपनी मुख़्तसर सी फ़ौज के साथ इस क़दर अजीम लाव लश्कर का बड़ी जुरअत के साथ मुकाबला किया जब फ़तह की कोई उम्मीद बाक़ी ना रही तो सलीबियों ने सुलह की दरख़्वास्त की फरिकीन में मुआदह सुलह हुआ जिसकी वजह से तीसरी सलीबी जंग का खात्मा हुआ. इस सलीबी जंग में मसीहियों को कुछ भी हासिल ना हुआ और वो नाकाम वापिस हुए. रिचर्ड शेर दिल सुल्तान की फ़ैयाज़ और बहादुरी से बहुत मुताअस्सीर हुआ जर्मनी का बादशाह भागते हुए दरिया में डूब कर मर गए और तकरीबन 600,000 मसीही इन जंगों में काम आए.

मुआदह की शर्त शायद कुछ ऐसे थी. बैत-उल-मुक़द्दस बदस्तूर मुसलमानों के पास रहेगा. अरसुफ, हाइफा, याफ़ा, आक्या के शहर मुसलमानों के क़ब्ज़े में चले गए. अस्क़लान आज़ाद इलाक़ा तस्लीम किया गया. जायरीन को आमद व रफ्त की इजाज़त दी गई. सलीब-ए-आज़म बदस्तूर मुसलमानों के क़ब्ज़े में रहेगी.तीसरी सलीबी जंग में सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने साबित कर दिया कि वो दुनिया का सबसे ताकतवर हुक्मरान है

सलाहुद्दीन अय्यूबी बड़े बहादुर और फ़ैयाज़ थे लड़ाइयों में मसीहियों के साथ इतना अच्छा सुलूक किया कि मसीही आज भी उनकी इज्जत करते हैं उनको जिहाद का इतना शौक था कि एक मर्तबा उनके निचले हिस्से में फोड़े हो गए जिसकी वजह से वो बैठकर खाना नहीं खा सकते थे लेकिन इस हालात में भी जिहाद की सरगर्मी में फ़र्क़ नहीं आया सुबह से लेकर ज़ोहर और असर से लेकर मगरिब तक बराबर घोड़े की पीठ पर रहते उनको खुद ताअज्जुब होता था और कहा करते थे कि जब तक घोड़े की पीठ पर रहता हूं सारी तकलीफ जाती रहती है और उसके ऊपर ज़े उतरने पर फिर तकलीफ शुरू हो जाती है.

मसीहियों से सुलह हो जाने के बाद सलाहुद्दीन अय्यूबी ने बैत-उल-मुक़द्दस की ज़ियारत करने की इजाजत दी, इजाज़त मिलने पर बरसों से जो जायरीन इंतजार कर रहे थे वो टूट पड़े शाह रिचर्ड के लिए इंतजाम कायम रखना मुश्किल हो गया और उसने सुल्तान से कहा कि वो उसकी तहरीर और इजाजत के बगैर किसी को भी बैत-उल-मुकद्दस में दाखिल होने की इजाज़त ना दें सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने जवाब दिया जायरीन बड़ी-बड़ी मुसाफतें तय करके जियारत को आते हैं उनको रोकना मुनासिब नहीं सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने ना सिर्फ ये के उन ज़ायरीन को अंदर आने की इजाज़त दी बल्कि उन ज़ायरीन को हर किस्म की आजादी दी बल्कि अपनी जानिब से लाखों जायरीन की मदारात, राहत, असायेश, और दावत का इंतजाम भी किया

सलाहुद्दीन अय्यूबी का गैर मुस्लिमों के साथ सुलुक ऐन इस्लामिक तालीमात के मुताबिक था और ये उसका सबूत है कि इस्लामी हुकूमत में ग़ैर मुसलमानों के हुक़ूक़ भी उसी तरह महफूज़ हुए जिस तरह मुसलमानों के, नूरुद्दीन की तरह सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की जिंदगी बड़ी सादा थी रेशमी कपड़े कभी इस्तेमाल नहीं किए और रहने के लिए जगह मामूली सा मकान होता था. काहिरा पर कब्जे के बाद जब उसने फ़ातमी हुक्मरानों के हालात का जायजा लिया तो वहां बेशुमार जवाहरात और सोने, चांदी के बर्तन जमा थे सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने ये सारी चीजें अपने कब्जे में लेने के बजाए बैत-उल-माल में दाखिल कर दिया के महालात को आम इस्तेअमाल में लाया गया और एक महल में अज़ीमुश्शान खानक़ाह कायम की गई.

फ़ातमियों के जमाने में मदरसे क़ायम नहीं किए गए शाम में तो नूरुद्दीन जंगी के जमाने में मदरसे और शफाखाना क़ायम हुए। लेकिन मिस्र अब तक महरूम था सलाहुद्दीन अय्यूबी ने यहां कसरत से मदरसे और शफाखाना कायम किए. उन मदारिस में तलबा के क़याम व तआम का इंतज़ाम भी सरकारी ख़ज़ाने से होता था.

काहिरा में सलाहुद्दीन अय्यूबी के कायम करदा शिफाखाने के बारे में एक स्याह इब्न जुबैर लिखता है कि ये शफाखाना एक महल की तरह मालूम होता है जिसमें दवाओं का बहुत बड़ा जखीरा है उसने औरतों के शिफा खाने और पागल खाने का भी जिक्र किया है सलाहुद्दीन अय्यूबी सल्तनतें गौरैया के हुक्मरान शहाबुद्दीन गौरी और मराकशी हुक्मरान याकूब-अल-मंसूर का हम असर था और बिला शुब्हा ये तीनों हुक्मरान अपने वक़्त में दुनिया के अजीम तरीन हुक्मरान में से थे.

4 मार्च 1193 बमुताबिक 589 हिजरी सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी इंतकाल कर गए उन्हें शाम के मौजूदा हुकूमत दमिश्क में मस्जिद उमया के नवाह में सुपुर्द-ए-खाक किया गया सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने कुल 20 साल हुकूमत की मुअर्रिख इब्न ख़ल्कान के मुताबिक सलाहुद्दीन अय्यूबी की मौत का दिन इतना तकलीफ देह था कि ऐसा तकलीफ देह दिन इस्लाम और मुसलमानों पर खोल्फा-ए-राशिदीन की मौत के बाद कभी नहीं आया.

मौजूदा दौर के एक अंग्रेज़ मुअर्रिख “लीन पोल” ने भी सुल्तान की बड़ी तारीफ की है और लिखता है कि उसके हमअस्र बादशाहो और उनमें एक अजीब फ़र्क़ था बादशाहों ने अपने जाह व जलाल के सबब इज़्ज़त पायी लेकिन सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने आवाम से मुहब्बत और उनके मुआमलात में दिलचस्पी लेकर हरदिल अज़ीज़ी की दौलत कमाई है !

Saturday, 25 September 2021

Irfna Razvi Ke Kadwe Ghoont

दोस्तों फिलहाल इरफान रज़वी के कड़वे घूँट के कुल 13 पार्ट ही लिखे गये हैँ
आप सब नीचे दी गई लिंक्स पर क्लिक करके पढ़ सकते हैँ ।

इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 1
पढ़ने के लिए यहां इस लिंक पर क्लिक करें
👇👇👇👇

इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 2
_पढ़ने के लिए यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिये
👇👇👇👇👇

इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 3
पढ़ने के लिए यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिये
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इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 4
पढ़ने के लिए यहां इस लिंक पर क्लिक करें
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इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 5
पढ़ने के लिए यहां इस लिंक पर क्लिक करें
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इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 6
पढ़ने के लिये यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिये
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इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 7
पढ़ने के लिये यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिये
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इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 8
पढ़ने के लिए यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिए 👇👇👇

इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 9
पढ़ने के लिए यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिए 👇👇👇

इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 10
पढ़ने के लिए यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिए 👇👇👇

इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 11
पढ़ने के लिए यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिए 👇👇👇

इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 12
पढ़ने के लिए यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिए 👇👇👇

इरफान रज़वी के कड़वे घूँट पार्ट 13
पढ़ने के लिए यहाँ लिंक पर क्लिक कीजिए 👇👇👇

तालिबे दुआ
मुहम्मद इरफान रजा़ रज़वी का़दरी
बीकानेर

Thursday, 29 July 2021

Eid e Ghadeer Manana Kaisa ईद ए ग़दीर मनाना कैसा

सवाल
शिया ईद ए ग़दीर क्यूं मनाते हैं ? अहले सुन्नत का ईद ए ग़दीर मनाना जाइज़ है या नहीं ?

ईद ए ग़दीर सबसे पहले किसने मनाई ?
हवालाज़ात की रोशनी में मुलाहिज़ा फरमाएं👇🏻))

ईद ऐ ग़दीर मनाना जाईज़ है या नहीं ?

ईद ए गदीर मनाना चाहिए या नहीं?
ओर ईद ए ग़दीर की शरई हैसियत क्या है ?

अल जवाब________

ईद ए ग़दीर अहले तशई के लिए ईदे अकबर है।  क्योंकि वो ये मानते है कि इस दिन हज़रत अलिय्युल मुर्तजा़ رضي الله عنه को खिलाफते बिला फसल मिली थी।

या इसलिए भी हो सकता है कि इसी दिन हज़रत उस्माने गनी رضي الله عنه की शहादत हुई थी।

लेकिन असल वजह यही है कि वो हज़रत अलिय्युल मुर्तजा़ رضي الله عنه को खलीफा ए बिला फसल मानते हैं।

ईद ए ग़दीर की इब्तिदा सबसे पहले मुइजुद्दौला बिन अब्विया ने रवाफिज़ के साथ मिलकर 18 जुलहज्ज 252 सिने हिजरी में बगदाद से शुरू कराई" 

जैसा के अल्बिदायह वन निहायह में  हाफ़िज़ इब्ने कसीर लिखते हैं👇🏻

[ ثم دخلت سنة ثنتين و ثلاثهاىٔة  ...... و فى عشر ذى الحجة منها أمر معزة الدولة بن بويه باظهار الزينة فى بغداد و ان تفتح الأسواق بالليل كما فى الأعياد ، وان تضرب الدباب و البوقات ، و ان تشعل النيران فى أبواب و عند الشرط ، فرحاً بعيد الغدير _ غدير خم _ فكان وقتا عجيبا مشهودا ، و بدعة شنيعة ظاهرة منكرة ]

(तर्जुमा :👉🏻 352 सिने हिजरी में 18 जुलहज्ज को मुइजुद्दौला बिन अब्विया ने बगदाद को सजाने का और रात को ईदों की रातों की तरह बाज़ार खोलने का हुक्म दिया, बाजे ओर बगल बजाए गए, हुक्काम के दरवाज़ों ओर फौजियों के पास चरागा किया गया, ईदे गदीर की खुशी में वोह दिन अजीब और देखने का दिन था, और ज़ाहिर है बुरी बिदअत का दिन था)

(( 📕 البدایہ والنھایہ ، جلد : ١١ ، صفحہ : ٢٤٣ ، مطبوعہ : بیروت ، لبنان ))

साबित हुआ कि ईद ए ग़दीर शिया हाकिम मुइजुद्दौला ने शुरू कराई।

ओर भी कई कुतुबे तवारिख में ये मौजूद है।

अल हासिल: अहले तशई ईदे ग़दीर इसलिए मनाते है और ईद ए ग़दीर की असल भी यही है कि हज़रत अली को खिलाफत मिली थी जबकि ये महज़ रवाफिज़ का इल्ज़ाम है।
अहले तशई (शिया) खिलाफते हज़रत अली رضي الله عنه के लिए इस हदीस से इस्तिदलाल करते हैं

(من كنت مولاه فعلي مولاه)
जिसका मैं मौला हूं उसके अली मौला हैं

(( 📕 جامع الترمذی ؛ باب مناقب علی بن ابی طالب ، الفصل الثانی ، حدیث نمبر : ٦٠٩١ ، صفحہ : ٥٨٠ ))
 

(( مشکوٰۃ المصابیح للجرجانی ، جلد نمبر : ٤ ، حدیث نمبر : ٥٠٢ ))

(( کنز العمال ، جلد نمبر : ٥ ، فضائل علی رضی اللّٰه عنہ ، حدیث نمبر : ٣٢٩٥ ، صفحہ نمبر : ٦٠٩ ، مطبوعہ : مؤسسۃ الرسالہ ، بیروت ))

(( تاریخ الخلفاء ، فصل فی الاحادیث الواردو فی فضلہ ( علی بن ابی طالب ) ، صفحہ : ١٣٥ ))

इस हदीस से इस्तिदलाल करते हैं, हालांकि इस हदीस का मतलब खलीफा या इमाम के नहीं बल्कि ब मा'ना मददगार है

जैसा कि इस हदीस की शरह में शैखे मुहक्किक, मुहक्किक अ़लल इत़लाक शैख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी رحمة الله फरमाते हैं👇🏻

[ بداں کہ ایں اقوی چیزیست کہ تمسک کردہ اند ، شیعہ درا عای ایشاں نص تفصیلی بخلاف علی مرتضیٰ رضی اللّٰه عنہ و میکویند کہ مولیٰ اینجا بمعنی اولی بامامت است ]
( तर्जुमा:👉🏻 जान लो कि ये सबसे ताकतवर दलील है जिससे शिया लोग इस्तिदलाल करते है कि ये हदीस हज़रत अली رضي الله عنه की खिलाफत की तफसीली नस है, औरर शिया कहते हैं कि यहां मौला के माना उला बिल इमामत है)

(( اشعتہ اللمعات شرح مشکوٰۃ ، باب مناقب علی ، جلد نمبر : ٤ ، صفحہ نمبر : ٣٧١ ، فارسی‌‌ ))

ओर मौला का सही माना हुज़ूर हकीमुल उम्मत मुफ्ती अहमद यार खान नईमी عليه الرحمة फरमाते हैं👇🏻

(यहां भी मौला ब माना खलीफा नहीं, मददगार या दोस्त है, जिसे हुज़ूर से मोहब्बत है उसे हज़रत अली से मोहब्बत होनी ज़रूरी है)

(( مرآة المناجیح شرح مشکوٰۃ المصابیح ، جلد نمبر : ٨ ، صفحہ نمبر : ٣٨٢ ))

ये है मौला का सही माना- लेकिन सिर्फ शियो ने इस का माना खलीफा या इमाम के लिए हैं।

इस वजह से ये हज़रत अली رضي الله عنه को सबसे पहला खलीफा मानते है। अस्तगफीरुल्लाह__ ओर इसी खुशी में ये ईदे गदीर मानते हैं।

और खुलफाए सलासा हज़रत अबू बक्रो, उमर, उस्माने गनी رضي الله عنهم اجمعين की खिलाफत को ये लोग बातिल मानते हैं। और ये कुफ्र है। इसलिए कि खुलफाए अरबाअ़ की खिलाफत पर इजमाए उम्मत है। जिस पर क दलाइल दिए जा सकते है।

अल हासिल_____ ईदे गदीर ये अहले तशई का तेहवार है जिससे उनका अक़ीदा ए शनीअ़ "खिलाफते बिला फसल" वाला अकीदा ज़ाहिर होता है इसलिए मुसलमानो का ईद ए ग़दीर मनाना गुनाह बल्कि गुमराही व कुफ्र पर मदद करना है ।

इसीलिए ईदे गदीर मनाना ना जाइज़ है

"من تشبه بقوم فهو منهم"
( ابو داؤد ، جلد : ٢ ، کتاب الباس )

🌹 و اللّٰه تعالیٰ اعلم بالصواب 🌹

✍️ नबीर ए सदरूल अफाजि़ल सय्यद मुइनुद्दीन नईमी (जामिया नईमिया, दीवान का बाज़ार, खतीबो इमाम: नाइयो वाली मस्जिद, मुराद आबाद) 

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✍️
इरफान रज़वी
    

Wednesday, 14 July 2021

ऐक अज़ान ओर 22 शहीद Ek Azaan Aur 22 Shaheed

13 जुलाई 1931 को बहुत बड़ी तादाद में कश्मीरी मुसलमान श्रीनगर सेन्ट्रल जेल के सामने जमा हुए... वो नोजवान अब्दुल क़दीर के साथ यार-ए-यक़जहती के लिये जमा हुवे थे, जिनपर डोंगरा राज ने बग़ावत का इल्ज़ाम लगाया था...। 


इस दौरान नमाज़ का वक़्त हुआ, इज्तिमा में ऐक मुसलमान उठा और अज़ान देने लगा...।

डोंगरा सिपाहियों ने फायर दाग दिया... कश्मीरी मुसलमान की अज़ान अधूरी रही...।

      एक और मुसलमान उठा और जहाँ से पहले मुसलमान ने शहादत की वजह से सिलसिला तोड़ा था उसने वहीं से जोड़ा... फिर फायर दागा गाया और उसे भी शहीद कर दिया गया...।

 अज़ान को मुकम्मल करने के लिये एक और मुसलमान उठा यहाँ तक कि एक के बाद एक 22 मुसलमानों ने अज़ान मुकम्मल की, और शहादत का रुतबा पाया...।


दुनिया ए इस्लाम की तारीख़ की ये वो वाहिद अज़ान है जिसको 22 शहादतों का फ़क़्र नसीब हुआ...।

22 शहीदों का खून बहा और अज़ान मुकम्मल हुई...।


तसव्वुर कीजिये कि अज़ान जारी है और 22 जाने बारी बारी शहादत हासिल कर रहीं हैं... अज़ान की ख़ातिर... हक़ की ख़ातिर... हक़ के ख़ुद इरादियत की ख़ातिर...।


ये वाकिआ अगर यूरोप या अमेरिका में हुआ होता तो इस पर अब तक सैकड़ों किताबें और कम से कम बीस फिल्में ज़रूर बन गईं होतीं...।


दुनिया में जबर और मज़ाहिमत के खूँ रेज़ वाकिआत में ये 22 शहीद और एक अज़ान सरे फहरिस्त रहेंगें...।

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✍️
इरफान रज़वी