बदमजहबों से हमदर्दी रखने वालो के लिए
वहाबी , देवबन्दी और दिगर बदमज़हब अक़ीदा रखने वाले गुस्ताख लोगो से, हमदर्दी और उनको मुसलमान जानने वाले नासमज भाइयो के लिए ख़ास पेशकश !
आज हमारे कुछ मुसलमान ये कहते है की नबी ए पाक कभी किसी काफिर को भी बुरा नहीं कहते थे ,और उनके साथ भी अच्छा अख़लाक़ इस्तेमाल करते थे ,
इसलिए काफिरो / वहाबी , देवबंदियों को भी बुरा नहीं कहना चाहिए और उनके साथ भी अच्छा अख़लाक़ दिखाना चाहिए !
पहले मैं आप के सामने नबी ए पाक के अखलाक (किरदार) की एक झलक कम लफ़्ज़ों में पेश करता हु !
1) एक औरत नबी ए पाक पर रोज़ कूड़ा फेकती थी , पर नबी ए पाक उसे कुछ ना कहते ! एक दिन जब वो औरत बीमार हो गयी तो आप उसकी मिज़ाज़ पुरसी के लिए उसके घर गए , बस ये अखलाक देख कर वो मुसलमान हो गयी !
2) एक औरत ने नबी ए पाक को कभी देखा नहीं था , बस सुना था की जो भी मुहमद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम का नाम सुनता है वो मुसलमान हो जाता है ! बस इस डर से वो अपना इलाका छोड़ कर जाने लगी , तो खुद नबी ए पाक रास्ते में मिले और उसका सामान उठा कर उसकी मंज़िल तक पहुँचाया , फिर उस औरत ने पैसे देने चाहे , तो आप ने लेने से मना कर दिया ! तो औरत ने पुछा कम से कम अपना नाम तो बता दो ? आप ने फ़रमाया ' मुहम्मद ' बस ये अख़लाक़ देख कर वो भी मुसलमान हो गयी !
3) एक काफिर ने नबी ए पाक के घर में मेहमान बनकर हाज़िर हुआ , तो आपने उसे अपने घर में रख्खा ! और खातिर तवज्जो फ़रमाया रात में उस काफिर ने आप के बिस्तर पर नजासत कर दी , और सुबह होते ही भाग गया ! फिर कुछ देर के बाद वापस आया तो देखा , तो नबी ए पाक खुद अपने हाथो से उसकी नजासत को धो रहे है ! बस ये अखलाक देख कर वो भी मुसलमान हो गया !
अब दूसरी तरफ देखिये
हदीस : नबी ए पाक अपने सहाबा से फरमाते है , क्या फाज़िर को बुरा कहने से परहेज़ करते हो ?
लोग इन्हें कब पहचानेंगे ?
फाज़िर की बुराई बयान करो ताकि लोग इस से बचे !
(कन्जुल उम्माल , सफा न. 338 )
हदीस : नबी ए पाक ने फ़रमाया " उन्हें अपनी दूर रखो और उनसे दूर भागो , कही वो तुमको गुमराह ना कर दे !
(मुस्लिम , सफा न. 10 , बाब उन नोहा )
क़ुरआन : तुम में से जो उनसे दोस्ती करेगा वो उन्ही में से है.
(माइदा 51 )
हदीस : जो काफिरो से मोहब्बत करे वो उन ही में से है !
(मुस्नद अहमद , 7 : 209 )
हदीस : नबी ए पाक ने अबु जहल , उत्बा बिन राबिया , सायबा बिन राबिया का नाम लेकर इनके लिए बद्दुआ फ़रमाई !
(बुखारी , कितबुल वुज़ू )
हदीस : एक शख्स मस्जिद ए नबवी में नमाज़ पढ़ रहा था , फिर भी नबी ए पाक ने अपने सहबा को हुक्म दिया की इसे क़त्ल कर दो !
(खसाइसुल कुब्रा सफा न. 229)
हदीस : नबी ए पाक ने मस्जिद ए नबवी से 300 लोगो का नाम लेकर मुनाफिक कहा और मस्जिद से बाहर निकाल दिया !
(मुस्लिम, जिल्द न. 1, किताबुल फितान )
हदीस : एक शख्स की बीवी नबी ए पाक की शान में कमी बयान करती थी , तो इसपर उसके शौहर ने उसे क़त्ल कर दिया , नबी ए पाक ने फ़रमाया इसका क़त्ल माफ है !
(अबु दावूद , 1 - 599 )
अब गौर कीजिये नबी ए पाक ने अच्छा अखलाक सिर्फ उनके सामने पेश किया , जो इस्लाम को जानते नहीं थे , फिर नबी ए पाक का अच्छा अख़लाक़ देख कर इस्लाम क़बूल कर लिया !
लेकिन जब किसी ने इस्लाम को जानने के बाद भी इस्लाम में खराबी पैदा करने की कोशिश की तो नबी ए पाक ने उनके लिए बद्दुआ भी फ़रमाई , उन्हें अपनी मस्जिद से भी निकला , मुनाफिक भी कहा और क़त्ल का हुक्म भी दे दिया और साहबा ने क़त्ल भी किया !
इसलिए पहले तो हम किसी भी वहाबी , देवबन्दी और दिगर बद मज़हब को अखलाक से समजाते है , पर जब वो मानने से इनकार करता है और नबी ए पाक की गुस्ताखी करता है , तो उसपर लानत करना और उसकी बुराई सबके सामने बताना ज़रूरी है ताकि लोग उसे पहचान ले !ऐ मुसलमानो जब कोई चोर तुम्हारे घर में चोरी करता है , तब तुम उसे चोर कहते हो , सजा देते हो पर जब कोई नबी ए पाक के खिलाफ बोलता है तो तुम अख़लाक़ दिखाते हो ???
जब सहाबा ने गुस्ताख़ को क़त्ल किया , तो उस वक़्त अख़लाक़ क्यों नहीं दिखाया ? क्या सहाबा के पास अखलाक नहीं था ? ( माज़ल्लाह )
या फिर तुम अपने अखलाक को सहाबा से बेहतर समजते हो ?
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